उगते फसल की सेवा करते।
खेतों का कण-कण है जिसकी जान,
महान पुरुष हैं, हैं वो किसान।
आसमान ही छत है इनका,
खेत है दुसरा मकान।
साँझ-सवेरा यहीं बिताते,
महान पुरुष हैं, हैं वो किसान।
खुद गरीबी से मर रहे है,
फिर भी देश का पेट भर रहे है।
ये सुख समृद्धि उनका ही दान,
महान पुरुष हैं, हैं वो किसान।
हर दर्द इनके दफ़न हो जाते,
जब खेतो में अनाज बनकर लहराते।
खुशियां इनकी छूती आसमान,
महान पुरुष हैं, हैं वो किसान।
देश प्रगति में हाथ बटाते,
खेतों में कभी न थकते।
खेती-बाड़ी से बनाई ईमान ,
महान पुरुष हैं, हैं वो किसान।