Back Bencher ki kahani

स्कूल और कॉलेज में दो तरह के स्टूडेंट्स होते हैं। एक होते है कुछ भी हो हमे आगे ही बैठना हैं और दूसरे होते हैं कुछ भी हो जाए लेकिन हमे पिछे ही बैठना हैं। बस में आज में जो पीछे बैठने वाले होते है वही बेक बेंचर्स की बात करने वाला हूं।
बेक बेंचर्स ये लफ्ज़ पिछले कुछ सालों में हमने बहुत बार सुना है किसी के लिए कहा है या खुद के लिए भी सुना हैं। ये वो लफ्ज़ हैं जो ज्यादातर स्टूडेंट्स एक बार तो अपनी लाइफ में जीना चाहते हैं महसूस करना चाहते हैं। कई सारे स्टूडेंट्स कि इच्छा होती हैं कि वो भी पीछे बैठकर देखे लेकिन टीचर क्या कहेंगे उस डर की वजह से नहीं बैठते हैं। ये बात भी उन की ठीक हैं लेकिन कुछ होते है हमारे जैसे जिनको किसी चीज का कोई फर्क नहीं पड़ता हैं वो पीछे ही बैठेंगे। टीचर अपनी पूरी जान लगा देंगे कि हम आगे आ जाए बैठने के लिए लेकिन हम भी अपनी जिद पे अडे रहेंगे और पीछे ही बैठेंगे।
अब पीछे बैठने के लिए इतना सारा जोखिम लेते हैं तो कुछ तो ऐसा फायदा होगा। लेकिन में आप लोगों को बताता हूं कि इसके फायदे बड़े कम है और उसके नुकसान ज्यादा है वो मेरे से बेहतर कोई नहीं बता पायेगा आपको। अब नुकसान तो हो गया है तो उसकी बात क्यों करनी हम फायदे कि बात करते हैं। एक तो ये की हम ब्रेक में सबसे पहले जा सकते हैं। पीछे बैठकर हम क्रिकेट मैच भी देख सकते है या तो जो में देखता था मिस्टर बीन या पिछले साल जो पुरा वर्ल्ड कप देखा था। पीछे से ऐसी कोई कॉमेंट पास करना कि जिससे पूरे क्लास में मनोरंजन हो। और जब टीचर पूछे किस ने किया है तो दूसरे का नाम ले लेना फिर जब टीचर सवाल पूछे तब कुछ भी ना आना और मुंह नीचा करके सुनना जो वो डांट रहे हैं वो और तभी आपके बाजु वाला आपको हसाने की कोशिश कर रहा हो कि आप को ज्यादा डांट पड़े तब आपको हसीं भी कंट्रोल करना। लेकिन गलती से आप को एक जवाब आ जाए तो पूरे क्लास में हल्ला होना और वो देख के मुस्कराना जब लेक्चर आधा हो गया हो तो चुप के से आकर बैठ जाना ये ज्यादातर पीछे ही होता हैं। एक ही नोट बुक में सब सबजेक्ट का लिखना और उसमें से ही जगा निकालकर गेम खेलना गलती से टीचर देख ले तो जबरदस्त एक्टिंग करना की नई हमारा तो पढ़ने में ही ध्यान है।
किस्से, कहानियां और बाते सब के पास होती हैं लेकिन बेक बेंचर्स के पास थोड़ी सी ज्यादा होती हैं। उनके पास बहुत सारी यादें होती है जो उनको और उनकी ये यादे सुनने वालो को एक अलग सा सुख देती हैं।

Nishant

परखों तो कोई अपना नहीं, समझो तो कोई पराया नहीं

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