ऐ मनुष्य प्रिय..
तूने क्या हाल किया..
क्यों त्रह त्रह कहार रही..
है तेरी ये धरती माँ.
एक देश ने दूसरे को, क्यों नष्ठ करने की ठानी है..
ये कैसी होड़..
ऐ मनुष्य तूने पाली है..
एक धरती के टुकड़े कर कर..
देश जाति में बाट दिया
फिर बचे हुए खंडो पर भी..
विश्व युध्द कर घात किया..
अब भी तेरे चित्त को क्यों शाँति नही मिल पाई है..
ऐ मनुष्य तूने ये कैसी होड़ लगाई है..
तुम सब एक ही माँ के तो जाए हो..पृथ्वी की संताने..
फिर तुम क्यों आज तक एक जुट न हो पाए हो...
एक साथ मिल कर तुम शक्ति और खंड - खंड में दुर्बल हो..
ऐ मनुष्य प्रिये ..
तुम सब इसी धरती के तो उपजाए हो।।