आज हमारे देश में ज़ोर शोर से महिला दिवस मनाया जा रहा है।
कहीं फूल , कहीं गुब्बारे, तो कहीं महज स्टेटस सजाया जा रहा है।
आज के दिन हर शख्स की ज़िंदगी में शायद कुछ खास होने वाला है।
नन्हीं बच्ची से लेकर हर माँ को, उसके औरत होने का अहसास होने वाला है।
कुछ लोग सच्चे दिल से औरतों के अहसानों का शुक्रिया अदा करेगें
तो वहीं कुछ चेहरों पे आज भी झूठी मुस्कान का नकाब होने वाला है।
क्या वास्तव में एक दिन काफी होता है।
औरत के हर जज्बात समझने के लिए
उनकी हँसी उनका दुख, उनके तमाम शिकवे गिले,अच्छे बुरे, बिगड़े हालात समझने के लिए
क्या वो सभी पल जहाँ वो अकेली खड़ी है, उनमें कोई हाथ पकड़ के साथ खडा होगा।
या आज "Happy Women's Day" कहके, कल फिरसे पुराना तमाशा खडा होगा।
क्या कल फिर से हर औरत को अपने रोजमर्रा की जिंदगी वापस कर दी जायेगी।
एक बेटी के बोलने का दायरा और एक सास, बहु के घुंघट का साइज समझायेगी।
आखिर क्यूँ लोग कहते हैं, ये काम तुम्हारा नहीं है, छोड़ो तुमसे नहीं हो पायेगा।
जरा दिल पे हाथ रखो और खुद से पूछो,क्या औरत के काम एक पुरूष कभी कर पायेगा।
एक औरत की सहनशक्ति दर्द की सारी सीमाएं लाँघ जाती है।
उसके ही तन से, एक मर्द, फिरसे एक औरत जन्म पा जाती हैं।
सिर्फ महिला दिवस मनाना नही, औरतों के त्याग उनके समझौते उनका जीवन समझना जरूरी है।
ज़िंदगी के हर पात्र से निकालकर सोचो,
एक नारी बिना कहानी कितनी अधूरी है!!!