आज़ादी का ये जो जशन हम मना रहे है..
न जाने क्यों इतना गर्व हम जता रहे है..
कौन कहता हम पूरी तरह आज़ाद है..
आज भी हम आधे गुलाम है..
हमारे सोच से जुड़ी ये बेड़िया इसका प्रमाण है..
पिघ्ला दो इन बेड़ियों को..
बहने दो अपने सोच के दायरे को..
बना दो एक ऐसा समाज...
जिसकी सोच हो एक खुली किताब..
और फिर मनाओ आज़ादी का जशन..
पुरे गर्व के साथ.. !!