कुछ फ़ुर्सत के पल !!



Swati


इस तेज़ रफ़्तार वाली ज़िन्दगी  को, 
जैसे तुमने थाम लिया है,
कुछ फ़ुर्सत, कुछ ख़ौफ़ ने ही सही,
लेकिन अपनो को अपनो से मिलवाया है !!

चार दिवारी के मकान को,
फिर से घर बनाया है,
जो आँगन सुनी पड़ी थी ना जाने कब से ही,
फ़िर से वो अपनो के मुस्कुराहटों से जगमगाया है..!!

शहर में बसे लोगों को आज उनके गाँव का याद आया है,
धुल पड़ी कुछ पुरानी तसवीरों को फ़िर से किसी ने 
चमकाया है !

सड़के सूनी, गलियाँ सूनी सबने खुद को सुरक्षित अपने घरों में पाया है,
ना जाने कितने अरसों के बाद ही, इस प्रकृति ने ऐसा क़हर बरपाया है !!

अब सुबह की नींद से अलार्म ने नहीं बल्कि पंछियों 
के स्वरों ने जगाया है,
इस lockdown के कुछ फ़ुर्सत के पलो ने ना जाने कितनो को खुद से मिलवाया है..!!!




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Nishant

परखों तो कोई अपना नहीं, समझो तो कोई पराया नहीं

1 Comments

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  1. Wonderful lines by swati singh...these lines reminds me the true lines of life..remarkable and fabulous words are Quoted in this..

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