कक्ष घर रूम सेल
बहुत से नाम है इस कमरे के
सुना है इन दिनों कमरे में रहने वाला
हर शख्स सुरक्षित है
हा बेशक! ऐसा है भी
पर कमरे में ज्यादा दिनों तक
इंसानी कण तक रह सकता है
पर इंसानी मन नहीं
और ना जाने इन दिनों तक कितने ही लोग
बाहर घूमने जाना चाहते हैं,
लोगों से मिलना चाहते हैं,
और जो नज़ारे धीरे धीरे धुँधले हो रहे है
उन्हें फिर से आँखों में बसाना चाहते है।
पर मुझे ये सब जितना जरूरी नहीं लगता है
मेरी कलम को ये उतना ही जरूरी लगता है
मैं लेखक कम और तस्वीरकार ज्यादा हूँ
शब्दों के रंगों से हर वो चित्र बनाता हूँ
जिसे दो नज़रें नहीं
सिर्फ दिल और दिमाग समझ सकते है।
पर इन दिनों मैं
ना इस कमरे की कैद से आजाद हो पा रहा हूँ
ना अपने हाथों में कलम ले पा रहा हूँ
क्या करूँगा कलम हाथ में लेकर
क्या लिख लूँगा इस चार दिवारी के अंदर
हा माना मैं अपने मन की दुनिया बना सकता हूँ
पर दुनिया क्या होती है कैसे चलती है
इन सब को समझने के लिए
मुझे इस दुनिया को जानना पड़ेगा
और उसके लिए मेरा
बाहर जाना जरूरी है
नज़रों में नज़रिए लाना जरूरी है
हर चीज को कहानी बनाना जरूरी है
और उस कहानियों को कलम से सजना जरूरी है
फिर आप सबके समक्ष लाना जरूरी है
यूँ तो मेरे कमरे मैं बहुत कुछ है
एक शीशा है
जो रोज एक ही भाव का अक्स दिखता है
एक आलमारी है नए कपड़ो से भरी
जो बाहर जाने की आस जागती है
एक पंखा है जो बाहर का एहसास
सिर्फ हवाओ से करता है
एक पलंग है जो ख़्वाबो तक ले जाता है
और एक डायरी है जो कितने ही दिनों से
खाली पन्नों के साथ मुझसे रूठी हुई है
दम सा घुटने लगा है इस कमरे में कैद होकर
सिर्फ मेरा नही मेरी कलम का भी
बाहर जाना है अब मुझे
जो कुछ बदल गया है
उसके लिए कुछ लिखना है
और बहुत कुछ बदलने के लिए
बहुत कुछ सीखना है