पापा


मेरे हाथों को थामकर चलना सिखाया

बेपरवाह बेधडक
आपने मुझे दौड़ना सिखाया
ज़िन्दगी की लड़ाई में
जब रुकने से डर लग्ता था
कंधे पर हाथ रख
"दो पल रुक जा
सांस तोह लेले" केहकर
आपने मुझे थमना सिखाया

उड़ने का सपना मैने देखा
मगर एक एक पँख जोड़के
मेरे ख्वाबो का आसमान
आपने सजाया

एक मामूली सी छीक क्या आजाती
घर को सर पर उठाकर
नींदें उड़ा कर
अपनो का ध्यान रखना आपने सिखाया

अपनो के लिए अपने आराम को भूल जाना
बेहिसाब, बिना कुछ मांगे अपना सब कुछ लुटाना
पापा कैसे करते हो येह सब?
सिख ना पाई हु अबतक
हो सके तोह येह भी सिखाना
हो सके तोह पापा
आप मुझे
अपनी परछाई बनाना ।
Dhairya Mehta

अनजान राहों में, कहानियों के ज़रिये मिलेंगे हम ये वादा है।

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