Poem By:- Trapti Rajput,16
वक़्त ने बेवक़्त आकार कैसा मुश्किल ये वक़्त दिखाया,कि,
बाबा! हम घर कब पहुंचेंगे,
बच्चों के इस सवाल का जवाब,
वो पिता अब तक ना दे पाया,
माँ के पल्लू की वो गांठ भी अब ढीली पडने लगी,
धीरे धीरे उस आंसुओ से भरे चेहरे पर,
बच्चों की भूख का वो डर नज़र आया,
वक़्त ने बेवक़्त आकार कैसा मुश्किल ये वक़्त दिखाया।
यहाँ उन ठंडी हवाओं में लेटे लोगों ने इस लॉकडाउन को पैरो की जंजीर बताया,
तो कहीं किसी को एक सर ढकने के खातिर एक छत के लिये भी तरसाया,
वक़्त ने बेवक़्त आकार कैसा मुश्किल ये वक़्त दिखाया।