शीशा जो चेहरा दिखलाता है वह चेहरा कहां होता है
ओढे नकाब हैं सब उजाले में भी चेहरा साफ कहां होता है
प्यार की तलाश में बैठे अपनो के पास पर अनजाने हो गये
अजीब दास्तां है दुनिया का अपना भी अपना कहाँ होता है
वहम में जी रहे थे हम भी पास आये तो ये पता चला
जिनकी खातिर लुटा दी दुनिया उनका साथ भी अपना कहाँ होता है
क्या करें कि चाहत थी हमारी पर साथ छुटा सफर में हमारा
इस जहाँ में प्यार भी बगैर मतलब के अब कहाँ होता है
ढूंढते हैं प्यार उनकी निगाहों में अब भी मिल जाय कहीं
वह चेहरा छुपाते हैं अपना पर हर सख्स 'अनजान' कहां होता है।।