एक रमज़ान ऐसी भी


Picture of Mohammed Saad Shethwala sitting on the bonnet of a car.


हर साल की तरह इस साल भी सब लोग रमज़ान की तैयारी महीनो पहले से कर रहे थे। सब के चेहरों पर और घरों मे ख़ुशी और उल्लास का माहौल था। ये बा बरकत महीना  साल मे एक बार आता है और लोग इसका बेसब्री से इंतजार करते है। 

तैयारी ज़ोरो शोरो से चल रही थी, घरों की साफ सफाई से लेकर दिलों  की साफ सफाई तक हर चीज को अच्छी तरह से साफ किया जा रहा था। सब अपने अपने हिसाब से तैयारी मे जुटे हुए थे । कुछ लोगो का रमज़ान को लेकर उलटी गिनती करना, बच्चो मे ख़ुशी के अब स्वादिष्ट स्वादिष्ट  खाना खाने को मिलेगा, लोगो के दिलों  मे नरमी, लोगो की आपस मे मुहब्बत, एक दूसरे को दुवां मे याद रखने को कहना और हाफ़िज़ का क़ुरान को याद करना ये सब इस बा बरकत महीने की शुरुआत से पहले के कुछ हसीन पल है। 

लेकिन इस बार कुदरत अपना अलग ही खेल, खेल रहा था|  और कुदरत के आगे हर कोई बेबस और लाचार हे। पूरी दुनिया करोना जैसी महामारी  से जूझ रही थी और इस महामारी को लेकर हर कोई परेशान था। इस बीमारी से बचने के लिए और इसे रोकने के लिए हर जगह सम्पूर्ण तालाबंद  करना ज़रूरी होगया था। इस वजह से लोगो को तरह तरह की परेशानी का सामना भी करना पड़ा। रमज़ान को सिर्फ एक महीना ही बाकि था और इस तालाबंद  के चलते ये हर किसी के लिए एक बड़ी चुनौती थी। 

मेरे दादा, दादी और घर के बड़ो का कहना था की ऐसी परिस्थिति आज तक हमने हमारी ज़िंदगी मे नहीं देखि। इस बिच रमज़ान को लेकर भी चिंता होने लगी थी के किस तरह इस बार का रमज़ान होगा हर तरफ खौफ और मायूसी छायी हुई थी। सब की यही उम्मीद  थी की जल्द से जल्द ये बीमारी खत्म हो और तालाबंद  भी हट जाये ताकि लोग ख़ुशी से ये रमज़ान का महीना गुज़ार सके। लेकिन कुदरत ने कुछ और ही सोचा हुआ था और खुदा हमसे नाराज़ था । ये एहसास होने लगा था के इस बार रमज़ान पहले जैसे नहीं होने वाले है। वैसे मस्जिद मे रमज़ान से पहले ही ताले लगा दिए गए थे और लोगो का एक जगह इकठ्ठा होना भी मना था। रमज़ान मे मस्जिदो मे आम दिनों के हिसाब से कही ज़यादा भीड़ रहती है, यही तो खास बात है रमज़ान की के लोगो का इबादत मे शामिल होना दुगना होजाता है। 

जैसे पता चल गया के इस बार रमज़ान घरों मे ही होने वाले है नमाज़ से लेकर तराहवीह सब कुछ घर मे ही पढ़नी है तो लोगो के चेहरे पर मायूसी छा गयी और क्यों ना हो जो मज़ा मस्जिद मे है वो और कही नहीं। ये बा बरकत महीना साल मे एक बार ही आता है और क्या पता आने वाले साल ये महीना नसीब होगा भी या नहीं। रमज़ान तो आते रहेंगे लेकिन ज़िन्दगी दोबारा नहीं आएगी इसीलिए ये तालाबंद  भी ज़रूरी था। 

ऐसे ही वक़्त गुज़रता गया और रमज़ान का महीना शुरू होगया, लोगो को ख़ुशी तो थी लेकिन दुख भी था क्यों की इस बार ना वो बाज़ार  मे रौनक होंगी, ना इफ्तार , और ना ही लोगो का मस्जिद मे साथ मिलकर नमाज़ और तरावीह का अदा करना। 

क्या कभी सोचा भी था,  रमज़ान ऐसा आएगा
मस्जिदे वीरान,  ये मंज़र न देखा जाएगा
रमज़ान ऐसा आएगा, रमज़ान ऐसा आएगा। 

अल्लाह ताला ने इस बार कुछ अलग ही मंज़र दिखाया हर घर को मस्जिद मे तब्दील कर दिया और सारे घर वाले मिलकर साथ मे नमाज़ अदा करने लगे। इसी बिच घर वालो का साथ मे नमाज़ और तरावीह का अदा करना, पूरा दिन साथ मे वक़्त गुज़ारना, साथ मे इफ्तारी और सेहरी करना ये सब पहली बार हो रहा था और इस चीज का अलग ही मज़ा आने लगा था लेकिन असली मज़ा तो उसी रमज़ान मे आता है और उसकी ख़ुशी मे शब्दों मे बयान नहीं कर सकता। 

रमज़ान के वक़्त लोग सिर्फ कहने के लिए ही खुश थे और खुश हो भी कैसे सकते है जब सारी इंसानियत इस महामारी की वजह से जूझ रही हो, हर इंसान अपनी तकलीफ मे उलझा हो, हर जगह से मौत की खबर आ रही हो और ऐसे मे खुश होना और दिल मे सुकून होना मुमकिन ही नहीं है। 

ये रमज़ान रमज़ान नहीं थी बल्कि खुदा की नाराज़गी थी।
Nishant

परखों तो कोई अपना नहीं, समझो तो कोई पराया नहीं

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