Poem By:- Jay Bhagat, 21
तुम चाहिए मुझे बस और कुछ नहीं
बस साथ चाहिए तुम्हारा और कुछ नहीं।
तुम्हारे ज़ुल्फो की घणी छाओ चाहिए बस और कुछ नहीं।
ज़िन्दगी के संग साथ चाहिए तुम्हारा बस और कुछ नहीं।
जवानी मे पागलपन चाहिए तुम्हारा बस और कुछ नहीं
बुढ़ापे मे तुम इतनी ही सुन्दर दिखना क्यों की वही है जो,
क्यों की वही है जो.... मुझे
चाइये सबसे ज़्यादा बस और कुछ नहीं.।
ऐसा नहीं सुन्दर हो तो चलेगा,
ये तुम्हारे हाथ का साथ ही तो है जो हमें बुढ़ापे मे जीने की
आस देगा,
यही चाइये मुझे बस और कुछ नहीं।
ज़िन्दगी के हर मोड़ पे, सहारा
मे बनूँगा तुम्हारा,
लेकिन इस सहारे का कन्धा तुम्हारा ही चाहिए मुझे बस और कुछ नहीं।
जब मौत दस्तक देने आयी हो, जब
मौत दस्तक देने आयी हो,
तब तुम रुक जाना, क्यों की
उस आसमान की ऊचाई से देखना चाहता हु तुम्हे,
इतना
ही चाइये मुझे, बस और कुछ नहीं।
अगर तुम चली जाओ पहले, तो
मुझे मत देखना उन वादियों से,
एक नन्हे से रूप मे बस चली आना अपने बच्चे की बेटी बनके,
इतना ही चाहिए मुझे बस और कुछ नहीं।
चलो मान लिया हम दोनों चले गए उस, देवभूमि मे,
तो प्रभु से इतना ही कहूंगा की अब बोहोत हुआ,
इंतेज़ार नहीं होता, अब बस कुछ साल गुजरने दो,
मेरी मेहबूबा के साथ, मगर
इस भूमि पर जिसे सब स्वर्ग के नाम से जानते है,
और मुझे एक वरदान दो की, मे
कभी सो ना पाउँ इन साल मे,
क्यों की इस ख़ूबसूरती को, पल
के लिए भी अँधेरे मे नहीं देखना चाहता,
इतना ही चाहिए मुझे बस और कुछ नहीं।