एक मासूम का बचपन आतंकवाद के घेरे में

childhood picture of Pratyush , his Family and Army personnel
आप में से कई लोग शाहरुख खान के फैन होंगे। उनकी एक फिल्म आई थी १९९८ में जिसका शीर्षक था दिल से। मैने लॉकडाउन के चलते ये फिल्म देखी फिर खयाल आया क्या उत्तर पूर्वी इलाकों में ऐसा कुछ हुआ था। मैं अपनी मा के पास पहुंचा और उनसे अपने बचपन की बातें पूछने लगा। जी हां आप लोग सोच रहे होगे आखिर मैंने अपने बचपन के बारे में क्यों पूछा आखिर ऐसा क्या था जिससे जानने के लिए मैं इतना इच्छुक था।मेरा पैदा होने से लेकर मेरे ७ साल तक के होने का बचपन जिस समय बच्चा इतना मासूम होता है के उससे कुछ समझ में नहीं आ रहा के आखिर ये दंगे जिहाद इंसर्गेंसी आखिर है क्या। 

सन् १९९९ मैं केवल छह माह का था मैं कोलकाता से तिनसुकिया आ रहा था मेरे पिता सरकारी दफ्तर में काम करते थे मेरी मम्मी हाउसवाइफ थी। मुझे देख कर आस पास के लोग मुझे गोद में उठाने के बेहद उत्सुक थे पर मैं उल्टी करने के अलावा और कुछ कर ही नहीं रहा मेरी मम्मी तो मुझसे परेशान होगाई हमारी ट्रेन अपने समय से चल रही थी कि अचानक सिलीगुड़ी नाम के स्टेशन पर रुखती है। एक घंटे से ज़्यादा समय होगया था ट्रेन आगे नहीं बढ़ रही थी अचानक टीसी सीआरपीएफ के कुछ लोगों के साथ आके चान बीन शुरू करते हैं मेरे पिता ने बड़ी नम्रता से पूछा ट्रेन आगे क्यों नहीं बढ़ रही तो टीसी ने कहा आगे कोकराझार नामक एक स्टेशन पर किसी ने ब्लास्ट कर दिया है जिससे ट्रेन की पटरी उखड़ गई है जी हां मैं पहुंचा भी नहीं था अपने घर और ये खबर सुनने को मिली ।

 ये बात उस वक़्त की जब आतंकवाद जैसी घटना अपने पूरे उफान पे थी यहां के लोगों का मानना था बाहर के लोग यहां आकर उनपे ज़ुल्म करते हैं उन्हें उत्तर के लोगों से बड़ी गृहा थी खासकर बिहारी और उसके आस पास के जगह के लोगों से वहां के लोग किसी भी बिहारी को पकड़ते और उससे अधमरा करके छोड़ जाते। लगभग एक दिन बाद मैं तिनसुकिया पहुंचता हूं जहां मेरे पिता के सरकारी दफ्तर था वो उस जगह २५ किलोमीटर दूर एक जगह में स्थीत था जिसका नाम दूमदूमा था । वहां मेरे पिता ने एक किराए का घर ले रखा उस किराए के घर में मकान मालिक के तीन बच्चे थे तीनों का नाम जॉन, डोना, पौला था तीनों मुझे देख कर बहुत खुश होती थी वो मुझे गोद में उठा कर जगह जगह घुमाती थी मेरे पिता को लगभग सारे लोग जानते थे वहां के दुकानदार सभी लोग। 

मेरे घर से कुछ दूर एक घर था उनका नाम मारिया था वो बहुत बूढ़ी थी उनके चार बेटे हुआ करते थे वह हमेशा अपने घर में रहती थी वह रोटी रहती थी चिलती रहती थी कुछ समय पहले की बात उनके बेटे घर पर आराम फरमा रहे के अचानक घर पे दस्तक हुई कुछ लोग हाथ मुंह ढके हाथों में हथियार लिए उन्हें ज़बरदस्ती उनके चार बेटों को उठालिया और अपने साथ लेके उनकी मां चिखती रही लेकिन कोई मदद करने नहीं आया कुछ दिनों बाद उनके घर पर उनके बेटों के कटे हुए सर भेजे जाते थे उनकी हालत पे लोग तरस खा रहे थे। एक रोज़ मेरी मम्मी खाना बना रही थी कि अचानक से किसी बच्चे की ज़ोर ज़ोर से आवाज़ आती हैं जैसे कोई बच्चा रो रहा हो मेरी मम्मी दरवाज़ा खोलती है लेकिन मकान मालिक के बच्चे कहते हैं आप अंदर चली जाए ये आदत की आवाज़ हैं।

 आप लोग सोच रहे होंगे बच्चे के रोने में कैसी आफत मेरी मां भी वही सोच रही थी लेकिन अगली सुबह मेरी मम्मी को पता चलता है कि ये आतंकवादियों की चाल है वे बाहर से आए लोगों को इसी का छलावा देकर गोली मारी देते थे। मेरे पिता कई अर्जियों के बाद वहां सीआरपीएफ के जवान तहनात करा दिए गए ताकि और नुकसान ना हो और कुछ ही दिनों के बाद उन्हें सफलता हाथ लगी और उन्होंने सारे आतंकवादी को ढेर करदिया ये बात सच है के लोगों ने आतंकी हमले किए लेकिन वहां के लोगों को इंसाफ चाहिए उनके साथ हुए उत्पीड़न और शोषण का वोह लोग किसी को मारना नहीं चाहते हैं बस अपने लोगों के लिए उन्नति चाहते जो सम्मान बाकी लोगों को मिलता उन्हें भी मिले लेकिन कहते हैं ना  एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती हैं ।

 कुछ लोगों की वजह से सारे समाज को इसका शिकार बनना। वहां के लोग तो इतना भी नहीं जानते के भारत में कितने राज्य हैं और कहां कहां है। मेरे सात सालों में मुझे चाहने वाले बहुत मिले अगर मैं आज भी उन गलियारों में चले जाऊं तोह पौला दी जॉन भैया ऐसे बहुत लोगों जिन्हे हमसे कोई बैर नहीं। जब तक हमारे देश में आतंकवाद नाम का दीमक है और उससे बढ़ाने वाले लोग है तब तक इस देश के भविष्य संकट में है। वे लोग पार्लियामेंट में भी है और आतंकी के भेस में बस उनके चेहरे से नकाब हटा ने की जरूरत है।
जय भारत, जय हिन्दी।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

ENGLISH TRANSLATION 
Many of you will be fans of Shahrukh Khan. One of his films came in 1998 titled Dil Se. I saw this film due to the lockdown, then suddenly nostalgia comes into my mind, did something like this happen in North Eastern areas. I reached my mother and started asking her about her childhood. Yes, you must be thinking, why did I ask about my childhood, what was it that I was so keen to know.
  From my birth to my age of seven years, when the child is so innocent that he cannot understand anything, what is this riot jihad insurgency after all?  I was only six months old. I was coming to Tinsukia from Kolkata. My father used to work in a government office. My mother was a housewife.
 On seeing me, the people around me were very eager to lift me in the lap, but I was not doing anything other than vomiting, my mother would be upset with me.
  It was more than an hour, the train was not moving. Suddenly TC came with some people of CRPF and started Chan Bean. My father asked them very politely why the train was not moving. In reply, they said someone blasted the tracks of the train at kokrajhar station which has uprooted the tracks, yes I did not even reach my house and got to hear this news.
 This was at a time when the incident like terrorism was in full swing, people of this place believed that people from outside came here and oppressed them, they had a bigger home than the people of the north, especially the people of Bihari and nearby places. People would catch any Bihari and leave him half dead.
 About a day later I reach Tinsukia where my father's government office was located in a place 25 km away, named Doomdooma. There my father took a rented house, in that rented house, the landlord had three children, the name of the three was John, Donna, Paula, all three were very happy to see me, she used to lift me in her lap and rotate them from place to place. Almost everyone knew that the shopkeepers there were all the people.
 There was a house some distance away from my house. Her name was Maria. She was very old. She used to have four sons, she always lived in her house, she used to live with bread. Some people knocked at home, with arms in their hands, they forced them to bear their four sons and took their mother with them, but no one came to help, but after a few days, their sons' severed heads were sent to their house. People were feeling pity for the condition.
 One day my mother was cooking in the kitchen, suddenly a loud voice of a child sounds as if a child is crying. My mother opens the door, but the children of the landlord say that you go in. This is the sound of danger. You guys must be thinking about how my mother was thinking about crying, but the next morning my mother realizes that this is the trick of the terrorists. They used to shoot people who came from outside and shot them because local people already knew their tricks and outsider can be to easy to caught.
My father after several applications to government CRPF jawans was ordered there so that there is no further damage and after a few days they got success and they killed all the terrorists. It is true that people carried out terrorist attacks but the people there They want justice, they do not want to kill anyone.  Oppression and exploitation they suffered due to the lack of government attention. Innocent people of northeast people just want advancement for their people,  the respect that the rest of the people get, but as the famous proverb, we know that one fish messes up the whole pond.
Due to some people, the whole of society has to become a victim of it. The people there do not even know how many states there are in India and where they are. In my seven years, I found many loved ones even if I still walk in those corridors, like Paula di John bhaiya, there are so many people who do not want to hate us and them love to greet us.
 As long as there is termite terrorism in our country and there are people to increase it, the future of this country is in crisis. Some of them are also in Parliament and in the disguise of the innocence, people just need to remove the mask from their face and show their face to their countrymen so that our people will not be humiliated in front of other countrymen.
Jai Bharat, Jai Hindi.
Jai Jawan Jai Kisaan Jai Vigyaan 
Pratyush Kumar Pani

Find my way to express not to impress by my stories.

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